
साहित्य मेरा रंग पर कहानियों की शृंखला में हम चुनिंदा रचनाकारों से उनकी पसंद की कहानियों को उन्हीं से सुनते हैं। इस क्रम में हम वरिष्ठ कथाकार डॉ. सूर्यबाला से लगातार कहानियां सुन रहे हैं। प्रस्तुत है उनकी एक और चर्चित कहानी 'रेस'।
डॉ. सूर्यबाला कहती हैं, "आज सारी भौतिक उपलब्धियों और सुविधाओं की भरमार के बावजूद सूचनातंत्रों ने मानवीय संवेदना के स्रोतों को लगभग सोख लिया है। यंत्रयुग की ‘रैट-रेस‘ कह लीजिए या ग्लैमर की चकाचौंध ने मनुष्य का मनुष्य के प्रति विश्वास खत्म किया है। परिवार टूटन और विखंडन की कगार पर हैं। जबकि मैं जीवन में मोहबंधों और जुड़ावों को बहुत महत्व देती हूं। मेरा विश्वास है कि सारे अपसांस्कृतिक तत्वों और विरूपताओं के बीच से साहित्य ही मनुष्य को जीने का सलीका सिखा सकता है। उसे जीवन मूल्यों से समृद्ध कर सकता है।"
डॉ. सूर्यबाला ने 150 से अधिक कहानियाँ, उपन्यास, व हास्य व्यंग्य लिखे हैं। समकालीन कथा साहित्य में डॉ. सूर्यबाला का लेखन अपनी विशिष्ट भूमिका और महत्त्व रखता है। समाज, जीवन, परंपरा, आधुनिकता एवं उससे जुड़ी समसयाओं को सूर्यबाला जी एक खुली, मुक्त और नितांत अपनी दृष्टि से देखने की कोशिश करती हैं।
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