
साहित्य मेरा रंग पर हिंदी कहानियों की शृंखला में हम चुनिंदा रचनाकारों से उनकी पसंद की कहानियों को उन्हीं से सुन रहे हैं। इस क्रम में सुनिए हिंदी की चर्चित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ से उनकी कहानी 'स्वांग'।
सामान्य मध्यवर्गीय जन-जीवन की स्थितियों से उठाई गई मनीषा की कहानियों की उल्लेखनीय विशेषता है इनके चरित्रों की असाधारणता। ये चरित्र प्राय: लीक से हटे हुए हैं और अपने विशिष्ट संदर्भो में अजीबोगरीब समझे जाने की हद तक अन्य लोगों से अलग है। एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में मनीषा कहती हैं, "मेरे क़िरदार थोड़ा इसी समाज से आते हैं, लेकिन समाज से दूरी बरतते हुए। मेरे किस्सों में फ्रीक जगह पाते हैं। सनकी, लीक से हटेले. वे बरसों किसी परजीवी की तरह मेरे ज़हन में रहते हैं। जब मुकम्मल आकार प्रकार ले लेते हैं, तब ये परजीवी मुझे विवश करते हैं। उतारो हमें कागज पर। कोई कठपुतली वाले की लीक से हट कर चली पत्नी, कोई बहरूपिया, कोई डायन क़रार कर दी गई आवारा औरत, बिगड़ैल टीनेजर, न्यूड मॉडलिंग करने वाली जमना, कोई सनकी फ़िल्ममेकर, एक तो स्किजोफ्रेनिक पेंटर ही।"
जोधपुर, राजस्थान में जन्मी मनीषा ने विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्नातकोत्तर और एमफिल हिन्दी साहित्य से किया। कहानी संग्रह 'कठपुतलियां', 'कुछ भी तो रूमानी नहीं', 'बौनी होती परछाई', 'केयर ऑफ स्वात घाटी', 'शिग़ाफ', 'शालभंजिका' और 'मल्लिका' उनकी कुछ चर्चित रचनाएं हैं।
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